ग्लोब रूपी सर्कस में दूसरों की नहीं, अपनी भूमिका का निर्वहन करें” -उपकुलपति प्रो पाणिग्रही
राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर उद्यमिता एवं कौशल विकास केंद्र संगम विश्वविद्यालय द्वारा भारत सरकार के राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा संस्थान तथा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के आर्थिक सहयोग से एक दिवसीय अंतर-पीढ़ी संबंध प्रोत्साहन कार्यशालाओं की श्रंखला के अंतर्गत पांचवीं कार्यशाला का आयोजन बीते हुये कल के ज्ञान को आने वाले कल के साथ जोड़ने की प्रतिज्ञा विषय पर किया गया । कार्यशाला का प्रमुख उद्देश्य सामाजिक रूप से युवाओं को जोड़ने के लिए डिजिटल डिटॉक्सिंग और पीढ़ियों के मध्य सीखने के लिए जीवनपर्यंत डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म का उपयोग करना था। कार्यशाला का आरंभ ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के समक्ष माननीय अतिथियों कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) करुणेश सक्सेना, उपकुलपति प्रोफेसर (डॉ.) मानस रंजन पाणिग्रही और डॉ प्रीती मेहता द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। स्वागत उद्बोधन में डॉ. मनोज कुमावत ने बदलते परिवेश में विभिन्न आयुवर्ग के लोगों के बीच बढ़ते स्क्रीन समय के प्रभावों को इंगित किया । कुलपति प्रोफेसर करुणेश सक्सेना ने अपने वक्तव्य में कहा कि कुछ लेने के लिए कष्ट तो उठाना पड़ता है। युवाओं के बेहतर भविष्य के लिए विभिन्न सरकारी संस्थाएं सिखाने के लिए तैयार हैं, लेकिन शर्त यही है कि आप स्वयं सीखने के लिए तैयार हों । उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे सीखने के लिए हमेशा तैयार रहें । उप-कुलपति प्रोफेसर मानस रंजन पाणिग्रही ने अपने सत्रीय सम्बोधन में कहा कि बदलते परिवेश में ज्ञान भौगोलिक सीमाओं को पार कर रहा है । इसका सम्पूर्ण श्रेय डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्मस को जाता है जिनके माध्यम से कहीं भी, किसी भी समय कुछ भी सीखा जा सकता है । अगले सत्र में डॉ. अनुराग शर्मा, प्रशिक्षण एवं प्लेसमेंट प्रमुख ने अपने सत्रीय वक्तव्य में कहा कि कर्म के परिणाम पर नहीं अपितु उसकी प्रक्रिया पर ध्यान केन्द्रित करते हुये अपने आत्म के आधार पर लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए । कार्यशाला में आये युवाओं का सम्मान प्रशस्ति पत्र देकर किया गया। इस अवसर पर विभिन संकायों के सदस्य डॉ. प्रीति मेहता, डॉ. तनुजा सिंह, डॉ. मुकेश शर्मा, डॉ. गौरव सक्सेना, डॉ. संजय कुमार, डॉ. कनिका चौधरी आदि उपस्थित रहे । मंच संचालन और पंजीकरण व्यवस्था को विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने संभाला। कार्यशाला के अंत में डॉ. रामेश्वर रायकवार ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।