भीलवाड़ा स्थानीय संगम विश्वविद्यालय के कला व मानविकी संकाय के हिंदी विभाग के अंतर्गत 31 जुलाई उपन्यास सम्राट प्रेमचंद के जन्मोत्सव पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया ,जिसमें कार्यक्रम की अध्यक्षता संगम विश्वविद्यालय कुलपति प्रोफ़ेसर करुणेश सक्सेना ने किया तथा मुख्य आतिथ्य उप कुलपति प्रोफ़ेसर मानस रंजन पाणिग्रही ने किया! इस विचार गोष्ठी में बताया गया है कि प्रेमचंद के नाम के पहले ‘मुंशी’ लगाना हिन्दी साहित्य के विद्यार्थियों का अज्ञान है। प्रेमचंद ने कभी भी अपने नाम के पहले ‘मुंशी’ नहीं लिखा । हाँ, उनके पिता ज़रूर डाकख़ाने में मुंशी थे ।इस भ्रामक धारणा के प्रचलित होने के मूल में दो कारण निहित हैं। पहला तो यह कि प्रेमचंद और कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने मिलकर संयुक्त रूप से ‘हंस’ का संपादन शुरु किया तब दोनों का नाम जोड़कर इतना लंबा हो जाता कि वह ठीक नहीं लगता अतः के. एम. मुंशी का संक्षिप्त नाम ‘ मुंशी’ पहले व प्रेमचंद का नाम योजक चिह्न लगाकर यों लिखा जाने लगा- मुंशी- प्रेमचंद ।
यह जुड़ा हुआ नाम ‘हंस’ पत्रिका के कवर पर इतनी बार देखते – देखते पाठक भ्रम के शिकार होकर प्रेमचंद को ही ‘मुंशी प्रेमचन्द कहने लगे ।प्रेमचंद के नाम के पहले मुंशी लगाने की भ्रामक धारणा का दूसरा कारण यह भी रहा कि प्रेमचंद जाति से कायस्थ थे और उस युग में कायस्थ जाति के ही अधिकतर लोग अदालतों वदफ़्तरों में मुंशी का कार्य किया करते थे प्रेमचंद ने मुंशीगीरी का कार्य कभी नहीं किया । अतः हिन्दी साहित्य के जागरूक पाठक को इस भ्रामक धारणा से उबरना चाहिये और प्रेमचन्द के नाम के पहले ‘मुंशी’ शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिये।कार्यक्रम में कला व मानविकी संकाय के असिस्टेंट डीन डा ज़ोरावर सिंह राणावत, डॉ अनिल कुमार शर्मा डॉ अभिषेक श्रीवास्तव ,डॉ संजय, डॉ रामेश्वर ,प्रमिला चौबे, अभिषेक पाराशर और विद्यार्थी उपस्थित थे ।कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग के डॉ अवधेश कुमार जौहरी ने किया।